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Mar 2, 2024

पारस ने हृदय रोग विभाग में भी पेसेंट सपोर्ट ग्रुप लाँच किया

पारस ने हृदय रोग विभाग में भी पेसेंट सपोर्ट ग्रुप लाँच किया
  • पहली बैठक में आये 100 मरीज, कई मरीजों ने पारस के इलाज की सराहना की और कहा कि हृदय रोगी भी अब सामान्य जीवन जी रहे हैं
  • हृदय रोग विभाग के डायरेक्टर डाॅ.ए.के. सिन्हा ने कहा कि सही समय पर  अपनी हृदय रोग और रिष्क के बारे में जानकर हृदय रोग से बचा जा सकता है
  • विभाग के सीटीवीएस सर्जन डाॅ. खालिद इकबाल ने कहा-बच्चों में जन्मजात हृदय रोग की समस्या का इलाज सर्जरी से ही संभव

पटना, 27 सितम्बर 2017 । पारस एचएमआरआई सुपर स्पेषिलिटी हाॅस्पिटल, राजाबाजार, पटना में मंगलवार 26 सितम्बर को हृदय रोग विभाग में भी पेसेंट सपोर्ट ग्रुप लाँच किया गया। ग्रुप की पहली बैठक में 100 हृदय रोगियों ने भाग लिया जिनका सफल इलाज यहां हो चुका है। इस मौके पर कई हृदय रोगियों ने पारस में हुए इलाज की सराहना की और कहा कि यहां अन्य राज्यों से कम खर्च पर सफल इलाज किया गया। मरीज रामदेव प्रसाद (नाम बदला हुआ) ने कहा कि मुझे सांस लेने में तकलीफ थी तथा मैं बेहोष भी हो जाया करता था, पटना में कई जगह इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ। फिर पारस में पेसमेकर लगाया गया, इसके बाद से मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ। पटना की रहनेवाली तथा झारखंड में षिक्षिका की नौकरी करने वाली फूल कुमारी (नाम बदला हुआ) के पति ने बताया कि उसकी पत्नी को पहले काफी उल्टी हुआ करती थी, पटना में कई जगह इलाज कराया गया, डाॅक्टरों ने गैस्ट्रो का मामला बताकर इलाज किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद पीजीआई, लखनऊ में इलाज कराया। वहां तो डाॅक्टरों ने कहा कि प्राइमरी पलमोनरी हाइपरटेषन नामक बीमारी से आपकी पत्नी ग्रसित हैं, पर तीन साल तक वहां के इलाज में रहने के बावजूद बीमारी ठीक नहीं हुई। इसके बाद वेल्लोर चला गया। वहाँ तो डाॅक्टरों ने वही बीमारी बताया जो लखनऊ में बताया गया था। वहां की दवा खाने के बाद दायां हृदय फेल कर गया। फिर पटना आकर पारस में दिखाया तो यहां के इलाज के बाद अब मेरी पत्नी बिल्कुल ठीक हैं। उन्होंने कहा कि अब वह सामान्य जीवन व्यतीत कर रही हैं तथा स्कूल भी नियमित तौर पर जा रही हैं।

पेसेंट सपोर्ट ग्रुप -पारस एचएमआरआई सुपर स्पेषिलिटी हास्पिटल

हृदय रोग विभाग के डायरेक्टर डाॅ. ए.के. सिन्हा ने कहा कि सही समय पर हृदय रोग के बारे में जानने पर और डाॅक्टरी सलाह लेने पर इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है। तली हुई चीजें नहीं खानी चाहिए, शरीर पर मोटापा को नहीं चढ़ने देना चाहिए तथा नित्य व्यायाम करने से शुगर और ब्लड प्रेषर नियंत्रित रहेंगे तो हृदय रोग की समस्या से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अब यह भं्रतियां मिट गयी है कि हृदय रोग होने के बाद मरीज अपना सामान्य जीवन नहीं जी सकता है। हृदय के रोगी इलाज या सर्जरी के बाद नियमित और सामान्य जीवन बिता सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों में इसके लिए जागरूकता फैलानी होगी कि हृदय रोग का इलाज अब पूर्णतः सुरक्षित है। डाॅ. सिन्हा ने कहा कि कुछ हद तक हार्ट अटैक अनुवाषिंक होता है। जिनके पिता 50 से कम उम्र में हार्ट अटैक से पीड़ित होते हैं, उनकी संतानों में अटैक की संभावना अधिक रहती है। इसलिए उन्हें अपने हृदय का बराबर चेकअप कराते रहना चाहिए। हार्ट अटैक में समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है और पहले घंटे को गोल्डेन आॅवर की संज्ञा दी गयी है। अगर आधा घंटा के अंदर इलाज या दवा शुरू कर दी जाती है तो हार्ट अटैक से बचा जा सकता है। इस कार्यक्रम में हृदय रोग विभाग के डाॅ. आनन्द गोपाल, अध्यक्ष ;ब्ंजी स्ंइद्ध व वरीय सहायक डाॅ. दीनानाथ, डाॅ0 नरेन्द्र कुमार, डाॅ.  नरेन्द्र भोसले भी मौजूद थे।

हृदय रोग विभाग के सीटीवीएस सर्जन डाॅ. खालिद इकबाल ने कहा कि बच्चों में जन्मजात हृदय रोग की समस्या का इलाज आॅपरेषन से ही संभव है। अगर सही समय पर इलाज कर दिया जाए तो बच्चा बिल्कुल ठीक हो सकता है। उन्होंने कहा कि आजकल टेक्नालाॅजी इतनी उन्नत हो गयी है कि हृदय रोग का इलाज बड़ी आसानी से किया जाता है। बच्चे के दिल का छेद बंद करना, बाइपास सर्जरी, वाल्व सर्जरी, वसकूलर सर्जरी और थोरासिक सर्जरी अब पारस एचएमआरआई में उपलब्ध है। हृदय रोगी जो पहले बिहार से बाहर इलाज कराने जाते थे, उन्हें अब बाहर जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बाहर से कम खर्च पर पारस में इलाज संभव है। उन्होंने कहा कि पहले हृदय रोग बूढ़े में होता था, लेकिन खान-पान और लाइफ-स्टाइल की गड़बड़ी से युवा वर्गों में भी हार्ट अटैक होता है। डाॅ. इकबाल ने कहा कि हार्ट अटैक होने पर तुरंत डाॅक्टर से परामर्ष लेकर इलाज शुरू करवा देना चाहिए।

सपोर्ट ग्रुप क्या है: इस गुप के सदस्य मरीज और उनके परिजन होते हैं जो एक-दूसरे से बात कर अपनी तकलीफों का निदान निकालते हैं। साथ ही नये मरीज को न डरने की सलाह देते हुए उन्हें इलाज के बाद सामान्य जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। ग्रुप के सदस्य एक-दूसरे के मनोबल को भी बढ़ाते हैं ताकि वह सर्जरी से न घबराए।