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Press Coverage

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Apr 25, 2022

11 वर्षीय बच्चे का मुफ्त में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने को आगे आया पारस एचएमआरआई हाॅस्पिटल

11 वर्षीय बच्चे का मुफ्त में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने को आगे आया पारस एचएमआरआई हाॅस्पिटल

पटना, 20 जनवरी, 2018। पारस एचएमआरआई सुपर स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल, राजाबाजार, पटना ने गुरूवार को ल्यूकेमिया (खून के कैंसर) से ग्रसित 11 वर्षीय बच्चे तरूण का मुफ्त में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने का आसवासन दिया। हाॅस्पिटल के फैसिलिटी डायरेक्टर डाॅ. तलत हलीम ने बुधवार को एक अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया में मरीज तरूण के पिता द्वारा राष्ट्रपति से सहायता की मांग वाली खबर छपने पर गुरूवार की सुबह अखबार से कहा कि पीड़ित परिवार को बता दिया जाए कि वे बच्चे के इलाज के लिए तुरंत हमारे हाॅस्पिटल में आ जाएं।

डाॅ. तलत हलीम के अनुसार कुछ बोन मैरो ट्रांसप्लांट समस्या पैदा करता है, इसलिए हम आप सभी से इस बच्चे के लिए दुआ मांगेंगे। इस संदर्भ में हमारे एम.डी. डाॅ. धर्मिन्दर नागर ने बच्चे के प्रति शुभकामनाएं भेज दी है। कल छपी खबर पर अपनी प्रतिक्रिया में डाॅ. हलीम ने कहा कि रूकनपुरा, पटना निवासी परिवार बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए 10-12 लाख रूपये नहीं खर्च कर सकता था जबकि बच्चे का बोन मैरो ट्रांसप्लांट अगले कीमोथेरेपी से पहले कराना अनिवार्य है। तरूण के पिता 38 वर्षीय संतोष कुमार, इलेक्ट्रीशियन हैं तथा सात हजार रूपये से ज्यादा महीना में नहीं कमाते हैं। श्री संतोष और उनकी पत्नी ने 15 जनवारी को राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद को पत्र लिखकर अपने पुत्र के इलाज के लिए आर्थिक सहायता की मांग की थी।

गुरूवार को जब टाइम्स आॅफ इंडिया ने तरूण की मां श्वेता को इलाज के लिए पारस की सहमति की बात कही तो वह खुशी के मारे रोने लगी। तरूण के पिता संतोष ने कहा कि मैं पारस का सदा के लिए ऋणी रहूंगा। संतोष ने अभी तक अपनी सारी बचत अपने लड़के तरूण पर खर्च कर दी है।

पारस कैंसर सेंटर  के हिमैटोलाॅजी विभाग के अध्यक्ष डाॅ. अविनाश कुमार सिंह ने बताया कि हम लोग मानवता के आधार पर यह मामला कर रहे हैं। हमारा हाॅस्पिटल बिहार, झारखंड तथा ओडिशा का एक मात्र हाॅस्पिटल है जो दोनों आॅटोलोगस (स्वंय) और एलोजेनिक (डोनर) बोन मैरो ट्रांसप्लांट करता है। डाॅ. हलीम ने कहा कि हमारे हाॅस्पिटल में अब तक पांच सफल बोन मैरा ट्रांसप्लांट हो चुका है।

डाॅ. सिंह के अनुसार पहले उसे तरूण के एंटीजेन (व्हाइट ब्लड सेल) से मैच की आवश्यकता पड़ेगी। पहले उसके भाई से एचएल एंटीजेन मैच करायेंग। यदि मैच होगा तभी ट्रांसप्लांट होगा नहीं तो माता-पिता में से किसी एक का स्टेम सेल मैच कराकर बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराया जाएगा। यह काफी जटिल प्रक्रिया है।

संतोष ने अपने पक्ष में राष्ट्रपति से आर्थिक सहायता की मांग की थी और सहायता नहीं मिलने पर इच्छा मृत्यु का आदेश देने को कहा था। तरूण को मार्च 2007 में ज्वाइंट में तेज दर्द हुआ था। पीएमसीएच में काफी जांच-पड़ताल के बाद ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) निकला। पीएमसीएच के डाॅक्टरों ने कहा कि निरंतर कीेमोथेरेपी से तरूण ठीक हो जाएगा। बाद में हमलोग पारस एचएमआरआई हाॅस्पिटल के डाॅ. अविनाश कुमार सिंह के पास आये। यहां उसे दो कीमोथेरेपी दिया गया। संतोष ने कहा कि शुरू में तो स्वास्थ्य अच्छा हुआ, लेकिन फिर स्वास्थ्य गिरने लगा। पिछले साल नवम्बर में डाॅ. सिंह ने कहा कि केवल बोन मैरो ट्रांसप्लांट से ही इसका जीवन बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अपने बेटे के इलाज के लिए हम अपने-अपने सगे संबंधियों से कर्ज ले चुके हैं, जबकि बिहार सरकार हमे 60 हजार रूपये दे चुकी हैं।

डाॅ. सिंह ने टाइम्स आॅफ इंडिया को बताया कि सभी ल्यूकेमिया मरीज को बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं पड़ती है। तरूण का मामला बिल्कुल अलग है। इसका शरीर व्हाइट सेल को बढ़ाने में एक सप्ताह की जगह एक माह लेता है। दूसरे कीमोथेरेपी के बाद इसकी स्थिति बिगड़ने लगी। अब तीसरा कीमो इसके लिए घातक हो सकता है। इसलिए अगले कीमो से पहले इसका बोन मैरो ट्रांसप्लांट आवश्यक है।


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