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Mar 2, 2024

पारस ने दो महीने से चलने-फिरने में लाचार युवक को दिलायी राहत

पारस ने दो महीने से चलने-फिरने में लाचार युवक को दिलायी राहत
  • हाॅस्पिटल के रीढ़ की हड्डी के विशेषज्ञ डाॅ. गौतम आर. प्रसाद ने माइक्रोडिस्कटमी आॅपरेशन कर दिलायी राहतहाॅस्पिटल के रीढ़ की हड्डी के विशेषज्ञ डाॅ. गौतम आर. प्रसाद ने माइक्रोडिस्कटमी आॅपरेशन कर दिलायी राहत
  • मरीज के दाहिने भाग में साइटिका से नसें दब रही थी जिसके कारण वह चल-फिर पाने में असमर्थ था, इस आॅपरेषन के 16-17 घंटे बाद मरीज चलने लगता है

पटना, 04 दिसम्बर, 2017 पारस एचएमआरआई सुपर स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल, राजाबाजार, पटना ने दो महीने से चलने-फिरने में लाचार गया के 27 साल के युवक को बड़ी राहत दिलायी। कमर की रीढ़ की हड्डी की नस के दबने से उसे दाहिने पैर में दर्द रहता था, जिससे वह चल नहीं पाता था। शौच व दैनिक कार्य करने में काफी तकलीफ होती थी। हाॅस्पिटल के रीढ़ की हड्डी के विशेषज्ञ डाॅ. गौतम आर. प्रसाद ने करीब 35 मिनट तक उसकी रीढ़ की हड्डी का आॅपरेशन कर उसे ठीक कर दिया। आॅपरेशन का नाम माइक्रोडिस्कटमी है। आॅपरेशन के 16-17 घंटे बाद वह चलने लगा। मरीज को लगा कि यह कौन सा चमत्कार हो गया कि वह चलने लगा। साथ ही उसे चलता देख उसके परिवार वाले भी दंग थे।

डाॅ. प्रसाद बताते हैं कि उसके दाहिने साइड में साइटिका हो गया था जिसके कारण वह चल नहीं पाता था। उन्होंने कहा कि रीढ़ की हड्डी के अंदर स्पाइनल कार्ड रहता है जिसमें से नस की अलग-अलग शाखाएं निकलती है जो हाथ और पैर को ताकत प्रदान करती है। कमर की हड्डी से पैर की नसें निकलती हैं। इन नसों पर यदि कोई दबाव पड़ने से जो दर्द होता है उसे साइटिका कहा जाता है। रीढ़ की हड्डी से डिस्क के टुकड़े निकलने पर नसें दबने लगती हैं मोटापा के कारण और भारी सामान उठाने पर भी डिस्क का टुकड़ा नीकलने से नसों पर दबाव बढ़ जाता है। इस बीमारी से पीड़ित 90 प्रतिशत मरीज तीन-चार दिन आराम करने तथा दवा लेने के बाद स्वस्थ हो जाते हैं। बाद में उन्हें फिजियोथेरेपी भी करायी जाती है। केवल 10 फीसदी मरीज को ही आॅपरेशन की जरूरत पड़ती है। पहले यह आॅपरेशन बड़ा चीरा लगाकर किया जाता था लेकिन अब एसआईएस (मिनिमल इनवेसिव स्पाइन सर्जरी) जिसे माइक्रोडिस्कटमी कहते हैं, इसमें छोटा चीरा लगाकर यह जटिल आॅपरेशन किया जाता है। हड्डी को बिना निकाले तथा मांसपेशियों को कम से कम क्षति पहुंचाते हुए डिस्क का खराब टुकड़ा निकाला जाता है। इसके बाद नस पर से दबाव निकल जाता है और खून का संचालन शुरू हो जाता है। छोटा चीरा आॅपरेशन से हाॅस्पिटल में कम दिन रहना पड़ता है, साथ ही खर्चा भी कम लगता है और तकलीफ भी कम होती है। इसके अलावा मरीज जल्दी अच्छी स्थिति में आ जाता है।