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Mar 2, 2024

ध्यान दें, आप क्या ब्रीथ कर रहे हैं: भारत में नॉन-स्मोकर्स को है लंग कैंसर का हाई रिस्क

ध्यान दें, आप क्या ब्रीथ कर रहे हैं: भारत में नॉन-स्मोकर्स को है लंग कैंसर का हाई रिस्क
  • पारस हॉस्पीटल गुड़गांव में पल्मोनोलॉजिस्ट और ओनकोलॉजिस्ट ने प्रदूषण में वृद्धि के कारण फेफड़े की बीमारियों में 20% वृद्धि देखी है
  • डॉक्टरों ने बताया कि उनमें से अधिकांश गैर धूम्रपान करने वाले हैं
  • प्राइमरीली प्रदूषण, इनडोर प्रदूषण और पैसिव स्मोकिंग के विभिन्न कारणों के कारण ओनकोलॉजिस्ट नॉन-स्मोकर्स में फेफड़े के कैंसर की बढ़ती प्रवृत्ति देख रहे हैं

गुड़गांव, 17 नवंबर 2017: 40  वर्षीय राजिंदर दिल्ली की ट्रेडिंग कंपनियों में से एक में सेल्स मैनेजर है। उच्च प्रदूषण लेवल के कारण, खांसी और हार्स वॉइस का अनुभव होने में वह आश्चर्यचकित नहीं था। जब खांसी धीरे-धीरे बिगड़ने लगी तो वह खांसी में आने वाले खून को देखकर स्तब्ध रह गया। परेशान होकर उसने खुद को पारस अस्पताल गुड़गांव में डायग्नोस्ड कराया। क्योंकि वह डारा हुआ था, डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वह फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित था। राजिंदर यह सुनकर अचंभित रह गया क्योंकि वह नॉन स्मोकर था और उसने कभी भी शराब का सेवन भी नहीं किया था।

पारस अस्पताल में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के सीनियर एडवाइजर डॉ परवीन यादव कहते हैं, “हमारे लिए राजिंदर की तरह नॉन-स्मोकर्स में फेफड़े के कैंसर का होना कोई आश्चर्यजनक नहीं है। लंग कैंसर की संभावनाओं को बढ़ाने में धूम्रपान केवल एकमात्र माध्यम नहीं है हालांकि, लंग कैंसर के लिए धूम्रपान सीधे प्रत्यक्ष क्रियात्मक कारक है, लेकिन पिछले दो दशकों में दुनिया भर के हाल के रुझानों ने नॉन-स्मोकर्स जनसंख्या में फेफड़ों के कैंसर में तेज वृद्धि देखी है। नॉन-स्मोकर्स में फेफड़े के कैंसर की घटना में अनुमानित तीन से चार गुना वृद्धि हुई है और धूम्रपान से संबंधित घटनाओं के आंकड़ों को तेजी से पकड़ रहा है। हाल ही के अध्ययनों में बताया गया है कि लगभग 45% फेफड़े का कैंसर नॉन-स्मोकर्स जनसंख्या में होता है।

प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में दुनिया भर में बात की जा रही है। प्रदूषण से होने वाले खतरे हमारे गुर्दे (किडनी), मूत्राशय (ब्लेडर), दृष्टि पर एक बहु आयामी हमले (मल्टी प्रोंग्ड) हैं और हमारे शरीर के सामान्य चयापचय (जनरल मेटाबॉलिज्म) में बाधा डालते हैं। दिल्ली में सांस लेना अब प्रति दिन सिगरेट के एक से दो पैकेट धूम्रपान करने के बराबर है। लेकिन पल्मोनोगोलॉजिस्ट पुराने अवरोधी फुफ्फुसीय विकार (क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पुलमोनरी डिस्टॉर्डर) (सीओपीडी), अस्थमा और फेफड़ों के कैंसर के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं।

पारस अस्पताल गुड़गांव के सीनियर कंसल्टेंट डॉ अरुणेश कुमार कहते हैं, “श्वसन संबंधी बीमारियों में सांस की तकलीफ होती है। प्रतिरोधी या प्रतिबंधात्मक फेफड़ों की बीमारी के शुरुआती चरणों में, तनाव से  सांस लेने में कमी होती है और यदि फेफड़ों की बीमारी की कंडीशन बढ़ती है, तो कम से कम क्रियाकलापों या फिर आराम करने में भी सांस लेने में परेशानी हो सकती है। किसी भी फेफड़ों की बीमारी में खाँसी एक सामान्य लक्षण है। आमतौर पर, खांसी सूखी या सफेद स्पटम के साथ होती है। क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस, प्रतिरोधी फेफड़ों की बीमारी का एक रूप वाले लोगों में,  कलर्ड स्पटम के साथ की अधिक खांसी हो सकती हैं। श्वसन रोग वाले लोगों में अवसाद और चिंता के लक्षण भी आम हैं। जब फेफड़ों की बीमारी गतिविधि और जीवन शैली में महत्वपूर्ण सीमाएं पैदा करती है तब ये लक्षण ज्यादा होते हैं।

चिकित्सा विशेषज्ञ श्वसन संक्रमण के अनुबंध के विभिन्न स्रोतों पर टिप्पणी करते हैं। इन स्रोतों में निष्क्रिय धूम्रपान (पैसिव स्मोकिंग) और उचित वेंटिलेशन के बिना इनडोर प्रदूषण के संपर्क में वृद्धि होती है। दिल्ली में वाहनों की बढ़ती संख्या शहर में बढ़ते प्रदूषण के स्तर का एक अन्य कारक है। डॉक्टर स्मॉग और कम विजिबिलिटी में मास्क पहनने और सुबह की जॉगिंग से बचने और टहलने के महत्व को रेखांकित करते हैं। फेफड़े का कैंसर न केवल धूम्रपान करने वालों को मारता है, यह गैर-धूम्रपान करने वालों को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसा कहा जाता है कि लगभग 20%  फेफड़े का ट्यूमर वास्तव में गैर धूम्रपान (नॉन स्मोकर्स) करने वालों में विकसित होते हैं।

डॉ अरुणेश कुमार सलाह देते हैं, “खराब पर्यावरण की स्थिति के कारण, स्वास्थ्य पिछड़ गया है।  शीत वायु और तेज हवाओं को श्वसन समस्याओं में ट्रिगर माना जाता है। यदि ठंड और हवा की जलवायु परेशान करती है, तो रोगियों को नाक और मुंह पर एक ढीला स्कार्फ या फेस मास्क पहनना चाहिए और शीतकालीन दिनों में अपनी नाक से सांस लेना चाहिए। विशेष रूप से ठंड के मौसम में खुद को गर्म रखें। अस्थमेटिक को विशेष रूप से ठंडी हवा में गतिविधि से बचना चाहिए और इनहेलर्स और अपनी दवाओं को उनके अनुरूप लेना चाहिए। यदि स्वास्थ्य खराब हो तो जल्दी ही चिकित्सा सहायता लें। क्रोनिक लंग डिसीज वाले लोगों को हर साल फ्लू का टीकाकरण और न्यूमोवोकल टीका लगवाना चाहिए।