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Mar 2, 2024

खुद के स्टेम सेल से हो रहा मल्टीपल माइलोमा का इलाज

खुद के स्टेम सेल से हो रहा मल्टीपल माइलोमा का इलाज
  • पारस हास्पिटल में चार से पांच लाख के पैकेज में इसका इलाज
  • मल्टीपल माइलोमा को ब्लड कैंसर भी कहते हैैं

पटना 28 मार्च 2018। मल्टीपल माइलोमा यानी ब्लड कैंसर एक जानलेवा बीमारी है पर इसका इलाज अब मरीज के खुद के स्टेम सेल से किया जाना संभव है। इसे ऑटोलोगस स्टेम सेल ट्रान्सप्लांट कहते हैैं। जब मरीज के किसी रिश्तेदार या करीबी के स्टेम सेल से ब्लड कैंसर का इलाज किया जाता है तो इसे लोजेनिक कहते हैैं। स्टेम सेल से इलाज के बाद मरीज की जिंदगी लंबी हो जाती है और वह ठीक भी हो जाता है। पटना स्थित पारस एचएमआरआई हास्पिटल में डॉ अविनाश ने हाल ही में एक 52 वर्षीय महिला धर्मशीला देवी का इलाज ऑटोलोगस स्टेम सेल ट्रांसप्लांट विधि से किया है।

चार से पांच लाख रुपये का खर्च आता है

डॉ अविनाश कहते हैैं कि पटना से बाहर स्टेम सेल से ब्लड कैंसर के इलाज पर सात से आठ लाख रुपये का खर्च आता हैै एवं मरीज को अपने घटर से 1000 किमी दूर 2 से तीन माह रहना पड़ता है। जिससे उनपर आर्थिक एवं मानकिस समस्या बढ़ ताजी है। जबकि पटना स्थित पारस एचएमआरआई हास्पिटल में इस इलाज का पैकेज चार से पांच लाख रुपये का है।

क्या लक्षण हैैं मल्टीपल माइलोमा के

मल्टीपल माइलोमा आम तौर पर अधिक उम्र के लोगों में होता है। इसके लक्षण यह हैैं कि मरीज को हड्डियों में दर्द होता है। कमर में दर्द होता है और किडनी से जुड़ी समस्या भी होती है। चक्कर भी आता है।

इस तरह होता है इलाज

डॉ अविनाश ने बताया कि ऑटोलोगस सिस्टम से मल्टीपल माइलोमा के इलाज के लिए तीन सप्ताह की प्रक्रिया होती है। पहले मरीज की कीमोथेरापी की जाती है। कीमो थेरापी के बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है। इस क्रम में मरीज दो-तीन सप्ताह तक बीमार भी रहता है। उसे डायरिया, उल्टी, बुखार, रक्त स्व्राब आदि होती है पर धीरे-धीरे वह ठीक हो जाता है।

दो साल से परेशान थीं धर्मशीला देवी

जिस 52 वर्षीय धर्मशीला देवी का ऑटोलोगस सिस्टम ले मल्टीपल माइलोमा का इलाज किया गया वह पिछले दो वर्षों से इस बीमारी से जूझ रहीं थीं। वह सीएमसी वेल्लौर भी गयीं थीं। वहां भी उन्हें ऑटोलोगस सिस्टम से इलाज का परामर्श दिया गया।लेकिन डाॅ. अविनास कुमार एवं पारस अस्पताल पर भरोसे के कारण यहीं इलाज कराने का निर्णय लिया एवं बोन मैरो ट्रांन्सप्लांट करवाया। आखिर में उन्होंने पटना पारस में अपना इलाज कराया। अब वह स्वस्थ हैैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि पारस एचएमआरआई के दो युवा स्टाफ मि॰ मनदीप एवं मि॰ रोषन ने आगे बढ़कर मरीज की सहायता की एवं अपना मरीज को दान किया।