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Press Coverage

Mar 2, 2024

16 वर्षीय नौजवान की सजड़क दुर्घटना से कोमा में जाने के बाद पारस हाॅस्पिटल के न्यूरोसर्जन ने बचाई जान

16 वर्षीय नौजवान की सजड़क दुर्घटना से कोमा में जाने के बाद पारस हाॅस्पिटल के न्यूरोसर्जन ने बचाई जान
  • पारस ग्लोबल हाॅस्पिटल, दरभंगा के आपातकालीन विभाग, न्यूरो सर्जरी एवं नयूराॅलौजी और क्रिटिकल केयर टीम ने मिलकर नवीनतम तकनीक और निपुण मेडिकल विशेषज्ञता से बचाई 16 साल के सड़क दुर्घटना में घायल लड़के की जान

दरभंगा 15 जून, 2018: गंभीर सर और छाती की चोटों से ग्रसित, राहुल साह को पारस अस्पताल दरभंगा के आपातकालीन विभाग में खून से लतपथ लाया गया था। इमरजेंसी यूनिट में राहुल की पल्स न मिलने के कारण उसको इलेक्ट्रिक शाॅक्स द्वारा पुनर्जीवित किया गया। वाइटल नार्मल होने पर न्यूरो सर्जरी, न्यूरो रोग और क्रिटिकल केयर की पूरी टीम को बुलाया गया और राहुल का परीक्षण किया गया।

राहुल के सर और छाती पर गंभीर चोटों के कारण उनकी नब्ज कमजोर थी और उनका ब्लड प्रेशर भी बहुत कम था। परिस्थितियों को देखते हुए डाॅक्टरों ने तुरंत राहुल को वेंटीलेटर पर डाल दिया ताकि उनके दिल और फेफड़ों पर ज़्यादा दबाव न पड़े। इमरजेंसी सीटी सकैन से यह ज्ञात हुआ की राहुल को बे्रन इंजुरी एवं मल्टीप्ल बे्रन हेमरेज था। डाॅ एजाज आलम न्यूरोसर्जरी विशेषज्ञ, पारस ग्लोबल हाॅस्पिटल दरभंगा के अनुसार, ‘‘बे्रन हेमरेज का मतलब है की बे्रन में जख्म या अत्यंत प्रेशर के कारण मस्तिष्क में रक्तस्राव हो जाना। ऐसा होना काफी खतरनाक है और यदि सही समय पर मेडिकल देखभाल न मिले तो इसके कारण मरीज की जान भी जा सकती है या अक्सर पैरालिसिस या अपंग रहना पड़ सकता है।’’

डाॅ एजाज के अनुसार, ‘‘हमारे लिए सबसे जरूरी था उसके दिमाग में बढ़ रहे प्रेशर को घटाना और किसी भी अन्दरूनी ब्लीडिंग या रक्तस्राव की तुरंत रोकना। सर्जरी में हमने सफलता पूर्वक दोनों चीजों का ख्याल रखा।’’

सर्जरी के बाद राहुल ने लगभग 5 दिनों के बाद अपनी आखें खोली और वापस कोमा से बाहर आये। डाॅ. एजाज बताते हैं की किसी भी पेशेंट का कोमा से बाहर आना बहुत महत्वपुर्ण हैं, परन्तु उसके पश्चात मिलने वाला उपचार भी सही होना चाहिए क्युंकि उसके सहारे ही वह आगे चलने और फिरने की क्षमता ले पायेगा।

डाॅ. मोहम्मद यासीन, न्यूरो रोग विशेषज्ञ के अनुसार, ‘‘राहुल हाॅस्पिटल में 45 दिन के लिए एडमिट रहा। पहले तो सांस लेने के लिए और खाने के लिए भी एक नली डाली हुए थी पर जैसे-जैसे उसकी सेहत में सुधार आता रहा, उसकी दिनचर्या मशीनों से मुक्त होती रही। राहुल का युवक होना उसके लिए फायदेमंद रहा क्युंकि उसकी रिकवरी काफी तीव्र हुई। जल्द ही वो सहारा लेकर चलने लगा और अपने आप खाना भी खाने लगा। ऐसी रिकवरी और पेशेंट की प्रगति केवल उचित उपचार और टेक्नोलाॅजी के प्रयोग से ही हो सकता है और पारस हाॅस्पिटल दरभंगा में ऐसे कई मामले हम डाॅक्टर सफलता पूर्वक मैनेज कर सकते हैं।’’

आज राहुल हाॅस्पिटल से डिस्चार्ज हो चुका है और एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहा है। राहुल के पिता के अनुसार, ‘‘अपने बेटे को खून में लतपथ देख, हमको लगा था कि हमने अपना बेटा खो दिया। पर हम आभारी हैं पारस दरभंगा की पूरी टीम का, जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 40 दिन से ज़्यादा हमारे बेटे पर काम किया और उसे स्वस्थ रूप में हमको सौंपा। यह हाॅस्पिटल दरभंगा के लिए वरदान है जहां किफायती दरों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का उपचार मिलता है।’’